राजस्थान के लोक देवता (Lok Devta of Rajasthan)

Rajasthan ke lok devta अलौकिक चमत्कारों से युक्त एवं वीरता पूर्ण कृत्यो वाले महापुरुष राजस्थान के लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध हुए लोक देवता से तात्पर्य उन महापुरुषों से हैं जिन्होंने अपने विरोचित कार्य तथा दृढ़ आत्मबल द्वारा समाज में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना, हिंदू धर्म की रक्षा तथा जनहितार्थ अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया । पाबूजी, हड़बूजी, रामदेव जी, गोगा जी एवं मांगलिया मेहाजी मारवाड़ के अंचल के पंच पीर कहलाते हैं। तो आज हम राजस्थान के लोक देवता के बारे में विस्तार से पढेंगे।

Table of Contents

राजस्थान के लोक देवता : –

बाबा रामदेवजी –

जन्म – बाबा रामदेव जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वितीया संवत 1462( सन् 1405) को बाड़मेर के शिव तहसील के उंडू कासमेर गांव में हुआ था भाद्रपद सुदी एकादशी संवत 1515( सन् 1458) को इन्होंने रुणिचा के राम सरोवर के किनारे जीवित समाधि ली थी।

पिता का नाम – अजमाल जी (तँवर वंशीय )।

माता का नाम – मैणादे (अर्जुन के वंशज मानी जाती है) ।

भाई – वीरमदे

बहन – सुगना (सगी बहन) तथा डाली बाई ( धर्म बहन) ।

पत्नी का नाम – नेतलदे

  • रामदेव जी को कृष्ण का अवतार माना जाता है ।
  • मुसलमान धर्म के लोग रामदेव जी की रामसापीर के रूप में पूजा करते हैं।
  • कामडिया पंथ रामदेव जी से प्रारंभ हुआ माना जाता है।
  • राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में रामदेव जी को रामसापीर, रुणिचा रा धणी एवं बाबा रामदेव के नाम से पुकारते हैं ।
  • रामदेव जी के गुरु का नाम बालीनाथ था ।
  • रामदेव जी ने भैरव राक्षस का वध कर जनता को कष्ट से मुक्ति दिलाई, पोकरण कस्बे को पुनः बसाया तथा सरोवर का निर्माण करवाया।
  • रामदेवरा रुणिचा में रामदेव जी का विशाल मंदिर है जहां पर प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीय से एकादशी तक विशाल मेला भरता है जिस की मुख्य विशेषता सांप्रदायिक सद्भाव है, क्योंकि यहां हिंदू मुस्लिम तथा अन्य धर्म की महिलाएं भी बिना किसी भेदभाव के दर्शन के लिए आती है।
  • रामदेव जी की भक्ति में कामड़ जाति की स्त्रियों द्वारा तेरहताली नृत्य किया जाता है।
  • छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है
  • इनके यात्री जातरु कहलाते हैं।
  • इनको पीरों के पीर का जाता है।
  • जातिगत भेदभाव एवं छूआछूत को मिटाने के लिए रामदेव जी ने जम्मा जागरण अभियान चलाया।
  • रामदेव जी के प्रतीक चिन्ह पगल्ये ‘चरण चिन्ह’ है।
  • रामदेव जी के भक्त जनों को रिखिया कहते हैं जो मुख्य रूप से मेघवाल जाति के होते हैं।
  • रामदेव जी के भक्त इन्हें कपड़े का बना घोड़ा चढाते हैं।
  • रामदेव जी के घोड़े का नाम लीला था ।
  • भाद्रपद शुक्ला द्वितीया बाबे री बीज (दूज) के नाम से पुकारी जाती है तथा यही तिथि रामदेव जी के अवतार की तिथि के रूप में लोक प्रचलित है ।
  • रामदेव जी के मंदिरों को देवरा कहा जाता है, जिन पर श्वेत या 5 रंगों की ध्वजा नेजा फहराई जाती है।
  • रामदेव जी एकमात्र ऐसे देवता हैं जो एक कवि भी थे। जिसकी रचित चौबीस बाणियाँ प्रसिद्ध है ।
  • डाली बाई रामदेव जी की अनन्य भक्त थी जिन्होंने रामदेव जी से 1 दिन पूर्व जीवित समाधि ली थी।
  • रामदेव जी की चूरमा, मिठाई, दूध, नारियल और धूप से पूजा होती है ।
  • रामदेव जी के अन्य प्रसिद्ध मंदिर जोधपुर के पश्चिम में मसूरिया पहाड़ी पर बिराँटिया (अजमेर ) एवं सुरताखेड़ा, चित्तौड़गढ़ में भी स्थित है।

वीर तेजाजी –

जन्म – खरनाल (नागौर) Mag Shukla Chaturdashi ko

पिता का नाम – ताहर जी

माता का नाम – राजकुँवर

पत्नी का नाम – पेमलदें (रायचंद्र की पुत्री, पनेर)।

घोड़ी का नाम – लीलण

गीत – तेजटैर कहलाते हैं

पुजारी – घोडला कहलाते हैं।

तेजाजी के अन्य नाम –

  1. सांपों के देवता, 2. गायों के रक्षक देवता , 3. काला और बाला का देवता, 4. धोलिया पीर , 5. कृषि कार्यों के उपासक देवता।

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु –

  • लोक देवता तेजाजी खरनाल, नागौर के नागवंशीय जाट थे ।
  • इन्होंने लाछा गुजरी की गाये मेरों से छुड़ाने हेतू अपने प्राणोत्सर्ग किए।
  • तेजाजी के थान पर सर्प व कुत्ते काटे हुए प्राणी का इलाज होता है।
  • किसान तेजाजी के गीत के साथ ही बुआई प्रारंभ करते है, ऐसा विश्वास है कि इस स्मरण से भावी फसल अच्छी होगी ।
  • तेजाजी मुख्य रूप से अजमेर जिले के लोक देवता हैं इनके मुख्य मंदिर अजमेर जिले के सुरसुरा, ब्यावर, सेंदरिया एवं भावतां में स्थित है।
  • परबतसर में भाद्रपद शुक्ला दशमी को विशाल पशु मेला भरा जाता है, जहां पर भारी मात्रा में पशुओं की खरीद होती है।
  • सर्पदंश का इलाज करने वाले तेजाजी के भोपे को घोडला कहते हैं।
  • तेजाजी की घोड़ी लीलण (सिणगारी) थी।

गोगाजी (गोगापीर) –

  • चौहान वंशीय गोगा जी का जन्म 11 वीं सदी में चुरू जिले के ददरेवा में हुआ ।
  • गोगा जी के पिता का नाम जेवर सिंह बाछल था ।
  • इनके गुरु का नाम गोरखनाथ था।
  • ददरेवा में इनके स्थान को शीर्षमेडी़ कहते है। जहां पर हर साल गोगाजी का मेला भरता है।
  • इस मेले के साथ राज्य स्तरीय पशु मेला भी भरा जाता है।
  • यह पशु मेला राज्य का सबसे लंबी अवधि तक चलने वाला मेला है।
  • इसमें हरियाणवी नस्ल का व्यापार भी होता है।
  • गोगामेडी का आकार मुकबरेनुमा है।
  • गोगाजी की ओल्डी सांचौर (जालौर) में स्थित है।
  • गोगा जी ने गौरक्षा एवं मुस्लिम आक्रांता (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

गोगाजी के अन्य नाम –

१. जाहरपीर, २. गोगापीर, ३. गुग्गा, ४. सांपों के देवता ।

  • किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले गोगाजी के नाम की राखी गोगाराखी हल और हाली दोनों के बांधते है।
  • गोगाजी को सर्प दंश से बचाव हेतु पूजा जाता है।
  • गोगामेडी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया तथा पुनः निर्माण महाराजा गंगा सिंह ने करवाया।
  • गोगाजी के थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते हैं जहां मूर्ति स्वरूप एक पत्थर पर सर्प की आकृति अंकित होती है।
  • गोगा जी के जन्म स्थल ददरेवा को शीर्षमेडी तथा समाधि स्थल को गोगामेडी (नोहर – हनुमानगढ़) को धुरमेडी कहते हैं , गोगामेडी में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णा नवमी को विशाल मेला भरता है ।
  • गोगाजी की घोड़ी का नाम नीली घोड़ी था जिसको गोगा बाप्पा के नाम से भी पुकारते थे।
  • गोगा जी की पूजा भाला लिए योद्धा के रूप में होती है, भाला लिए घुड़सवार गोगाजी और साथ में प्रतिक सर्प है।

पाबूजी राठौड़ –

  • राठौड़ राजवंश के पाबूजी राठौड़ का जन्म 13वीं शताब्दी में फलोदी (जोधपुर )के निकट कोलूमंड में हुआ था।
  • पिता का नाम – धाँधल
  • माता का नाम – कमलादे
  • ये राठौड़ों के मूल पुरुष राव सीहा के वंशज थे।
  • पाबूजी का विवाह अमरकोट के राजा सूरजमल सोढा की पुत्री सुप्यरदे से हो रहा था कि यह फेरों के बीच से उठकर अपने जिंदराव खिंची से देवल चारणी की गायो छुड़ाने चले गए और देचू गांव में युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
  • पाबूजी को गौ रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • पाबूजी की घोड़ी का नाम केसर कालवी था।
  • पाबूजी को लक्ष्मण का अवतार माना जाता है।
  • प्लेग रक्षक एवं ऊंटो के देवता के रूप में पाबूजी की विशेष मान्यता है।
  • मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय पाबूजी को ही दिया जाता है।
  • ऊंटों के पालक रायका (रेबारी) जाति पाबूजी को अपना आराध्य देव मानती है।
  • पाबूजी केसर कालवी घोडी एवं बांयी और झुकी पाग के लिए प्रसिद्ध है, इनका बोधचिन्ह भाला है।
  • कोलू मंड में पाबूजी का सबसे प्रमुख मंदिर है जहां पर प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को विशाल मेला भरता है।
  • पाबूजी की पड़ नायक जाति के भोपो द्वारा रावण्हत्ता वाग्ध के साथ बांसी जाती है।
  • चाँदा – डेंमा एवं हरमल पाबू जी के रक्षक सहयोगी के रूप में जाने जाते हैं ।
  • आशिया मोड़जी द्वारा लिखित पाबू प्रकाश पाबूजी के जीवन पर एक महत्वपूर्ण रचना है ।

देवनारायण जी –

– देवनारायण जी का जन्म संवत 1300 में बगड़ावत परिवार में हुआ।

  • वे सवाईभोज और सेढू के पुत्र थे, इनका जन्म नाम उदय सिंह था।
  • देवनारायण जी के घोड़े का नाम लीलागर था।
  • पत्नी का नाम – पीपलदे (धार नरेश जयसिंह की पुत्री)।
  • गुर्जर जाति के लोग देवनारायण जी को विष्णु का अवतार मानते हैं ।
  • देवनारायण जी की पड़ गुर्जर भोपो द्वारा बांची जाती है यह सबसे बड़ी पड है।
  • देवनारायण जी का मेला भाद्रपद शुक्ला छठ व सप्तमी को लगता है।
  • देवनारायण जी ने देवमाली (ब्यावर) में अपनी देह त्यागी।
  • देव जी का मूल देवरा आसींद (भीलवाड़ा) से 14 मील दूर गोठां दडावत में स्थित है।
  • देवनारायण जी के देवरो में उनकी प्रतिमा के स्थान पर बड़ी इंटो की पूजा की जाती है।
  • देवनारायण जी के अन्य प्रमुख मंदिर देव धाम जोधपुरिया (निवाई, टोंक) देव डूंगरी पहाड़ी (चित्तौड़) देवमाली (ब्यावर, अजमेर) में स्थित है।
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हड़बू जी –
  • हड़बूजी भूंडोल (नागौर) के राजा मेहाजी के पुत्र थे तथा वे मारवाड़ के राव जोधा समकालीन थे।
  • लोक देवता रामदेव जी हड़बूजी के मौसेरे भाई थे।
  • रामदेव जी की प्रेरणा से हड़बूजी ने योगी बालीनाथ से दीक्षा ली तथा बाबा रामदेव के समाज के लक्ष्य के लिए उन्होंने आजीवन पूर्ण निष्ठा से कार्य किया।
  • मंडोर को मुक्त कराने के लिए हड़बूजी ने राव जोधा को कटार भेंट की थी इस अभियान में सफल होने पर राव जोधा ने हड़बूजी को वेंगटी ग्राम अर्पण किया।
  • हड़बूजी शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे।
  • इनके गुरु का नाम बालीनाथ था।
  • बेंगटी (फलोदी) में हड़बूजी का मुख्य पूजा स्थल है।
  • हड़बूजी के पुजारी साँखला राजपूत होते हैं।
  • श्रद्धालुओं द्वारा मनायी गई मनौती या कार्य सिद्ध होने पर गांव बेंगटी में स्थापित मंदिर में हड़बूजी की गाड़ी की पूजा की जाती है इस गाड़ी में हड़बूजी पंगु गायों के लिए घास भरकर दूर-दूर से लाया करते थे।

मांगलिया मेंहाजी –

  • मेहाजी सभी मांगलियो के इष्ट देव के रूप में पूजे जाते हैं।
  • मेहाजी का सारा जीवन धर्म की रक्षा और मर्यादा के पालन में बीता।
  • मंगलिया मेहाजी जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
  • मेहाजी का मंदिर बापणी में स्थित है ।
  • भाद्रपद में कृष्ण जन्माष्टमी को मांगलिया राजपूत मेहाजी की अष्टमी मनाते हैं।
  • लोक मान्यता है कि इनकी पूजा करने वाले भोपा की वंश वृद्धि नहीं होती है। वो गोद लेकर पीढ़ी को आगे बढ़ाते हैं।
  • किरड – काबरा घोडा मेहाजी जी का प्रिय घोडा था।

कल्लाजी –

  • वीर कला राठौड़ का जन्म मारवाड़ के सामियाना गांव मेड़ता (नागौर) में राव अचला जी के घर हुआ।
  • इनको कहीं सिद्धियां प्राप्त थी।
  • इनको शेषनाग का अवतार माना जाता है।
  • प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ इनके गुरु थे।
  • मीराबाई इनकी बुआ थी।
  • इनको योगाभ्यास एवं जड़ी बूटियों का ज्ञान था।
  • कल्ला जी चित्तौड़ के तीसरे शाके में अकबर के विरूद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
  • युद्ध भूमि में चतुर्भुज के रूप में दिखाई गई वीरता के कारण इनकी ख्याति चार हाथ वाले लोक देवता के रूप में हुई।
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कल्लाजी राठौड़ की भैरव पोल पर छतरी बनी हुई है।
  • रनेला इस वीर का सिद्ध पीठ है।
  • भूत -पिशाच ग्रस्त लोग, रोगी पशु, पागल कुत्ता, गोयरा, सर्प आदि विषैले जंतुओं से वंचित व्यक्ति या पशु सभी कला जी की कृपा से संताप से छुटकारा पाते हैं।
  • दक्षिणी राजस्थान में वीर कल्लाजी की मान्यता ज्यादा है।

मल्लीनाथ जी-

  • राजस्थान के लोकदेवता मल्लिनाथ जी का जन्म सन 1358 में मारवाड़ के राव तीड़ा के जेष्ठ पुत्र के रूप में हुआ।
  • इनकी माता का नाम जाणीदे था।
  • मल्लिनाथ जी एक भविष्य दृष्टा एवं चमत्कारी पुरुष थे। यह निर्गुण निराकार ईश्वर को मानते थे।
  • तिलवाड़ा (बाड़मेर) में इनका प्रसिद्ध मंदिर है।
  • तिलवाड़ा में हर वर्ष चैत्र कृष्णा एकादशी से 15 दिन तक मेला भरता है जहां, बड़ी संख्या में पशु का क्रय-विक्रय होता है।
  • इस मेले में थारपारकर एवं कांकरेज नस्ल का व्यापार होता है।
  • इनकी रानी रूपादे का मंदिर भी तिलवाड़ा से कुछ दूरी पर माला जाल गांव में स्थित है।
  • लोक मान्यता के अनुसार बाड़मेर के गुडामालाणी क्षेत्र का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा था।

राजस्थान के लोक देवता – देव बाबा

  • पशु चिकित्सा का अच्छा ज्ञान होने के कारण देव बाबा गुर्जर व ग्वालो के पालनहार एवं कष्ट निवारक के रूप में पूजे जाते हैं।
  • भरतपुर के नगला जहाज गांव में देव बाबा का मंदिर है।
  • जहां पर हर वर्ष भाद्रपद शुक्ला पंचमी तथा चैत्र शुक्ला पंचमी को (वर्ष में दो बार)मेला भरता है।

मामा देव –

  • राजस्थान के लोक देवताओं में मामादेव भी एक विशिष्ट लोक देवता है ।
  • जिनकी मिट्टी पत्थर की मूर्तियां नहीं होती है बल्कि लकड़ी का एक विशिष्ट में कलात्मक तोरण होता है। जिसको गांव के बाहर की मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठित किया जाता है।
  • मामादेव मुख्यतः गांव के रक्षक एवं बरसात के देव माने जाते हैं।
  • मामा देव को भैंसे की बलि दी जाती है।

तल्ली नाथ जी-

  • तल्ली नाथ जी जालोर जिले के अत्यंत प्रसिद्ध लोक देवता है ।
  • इनका वास्तविक नाम गांगदेव राठौड़ था।
  • तल्ली नाथ जी के पिता का नाम वीरमदेव था। जो शेरगढ़ (जोधपुर) ठिकाने के शासक थे।
  • तल्ली नाथ जी के गुरु का नाम जालंधर नाथ था
  • किसी व्यक्ति या पशु को बीमार पड़ने या जहरीला कीड़ा काटने पर इनके नाम का डोरा बांधा जाता है।
  • जालौर के पास पांचौटा गांव के निकट पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्लीनाथ की मूर्ति स्थापित है।
  • मूर्ति के आसपास के क्षेत्र को ओरण माना जाता है
  • इस ओरण से कोई भी पेड़ पौधा नहीं काट सकता है।

वीर बिग्गाजी –

  • लोक देवता बग्गा जी का जन्म बीकानेर के रीडी गांव के एक जाट कृषक राव महेन के घर हुआ था।
  • इनकी माता का नाम सुल्तानी था।
  • इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन को गौसेवा में व्यतीत किया और अंत में मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कीये।
  • जाखड़ समाज के लोग इन्हें कुलदेवता के रूप में पूजते हैं।

राजस्थान के लोक देवता – भूरिया बाबा 

  • भूरिया बाबा को गौतमेश्वर नाम से भी जाना जाता है।
  • भूरिया बाबा दक्षिणी राजस्थान के गोडवाड़ क्षेत्र की मीणा आदिवासियों के इष्ट देवता है।
  • इनका प्रसिद्ध मंदिर अरावली पर्वत श्रंखला में पाली जिले में स्थित है।

वीर फत्ता जी –

  • वीर फत्ता जी का जन्म वर्तमान जालौर जिले के साँथू गांव में हुआ।
  • इन्होंने लुटेरों से गांव की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की बलि दी थी और सदा के लिए लोक देवता के रूप में अमर हो गए।
  • साँथू गांव (जालौर) में इनका विशाल मंदिर है ।
  • जहां भाद्रपद शुक्ला नवमी को प्रतिवर्ष विशाल मेला भरता है।

भोमिया जी –

  • भोमिया जी भूमि के रक्षक देवता के रूप में पूजे जाते हैं ।
  • यह राजस्थान के गांव-गांव में भूमि रक्षा हेतु पूजनीय है।

केसरिया कुँवर जी –

  • केसरिया कुंवरजी गोगाजी के पुत्र थे। जिसको लोग देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
  • इनके थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराई हैं ।
  • केसरिया कंवरजी के भोपे सर्पदंश रोगी का जहर मुंह से सुचकर बाहर निकाल देते हैं।

राजस्थान के लोक देवता – हरिराम जी बाबा

  • इनका मंदिर सुजानगढ़ -नागौर मार्ग पर झोरड़ा गांव में स्थित है ।
  • यह सर्प दंश का इलाज करते हैं ।
  • मंदिर में सांप की बांबी एवं बाबा के प्रतीक के रूप में चरण कमल है।
  • यहां पर हर वर्ष विशाल मेला भरता है ।

राजस्थान के लोक देवता – वीर पनराज जी

  • इनका जन्म सोलवीं वी सदी में जैसलमेर के नगा गांव के क्षत्रिय परिवार में हुआ ।
  • पनराज जी का काठौड़ी गांव के ब्राह्मण परिवार की गायों को मुस्लिम लुटेरों से बचाते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए और लोक देवता के रूप में अमर हो गए।
  • इनकी स्मृति में प्रतिवर्ष पराजसर गांव में वर्ष मे दो बार मेला भरता है।

बाबा झुंझार जी –

  • बाबा झुंझार जी का जन्म सीकर क्षेत्र के इमलोहा गांव के राजपूत परिवार में हुआ।
  • इन्होंने गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवा दिए। तभी से इन्हें लोकमानस द्वारा लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
  • प्रति वर्ष रामनवमी को इसकी स्मृति में मेला लगता है।

राजस्थान के लोक देवता – रूपनाथ (झरडा़)

  • रूपनाथ जी को झरडा़ भी कहा जाता है।
  • यह पाबूजी के बड़े भाई बूढ़ोजी के पुत्र थे।
  • इन्होंने अपने पिता और चाचा (पाबूजी) की मृत्यु का बदला जिंदराव खिंची को मार कर लिया ।
  • हिमाचल प्रदेश में इनको बालक नाथ के रूप में पूजा जाता है ।
  • इनका प्रमुख मंदिर कोलूमंड (जोधपुर) के पास पहाड़ी पर तथा बीकानेर के सिंभूदड़ा, (नोखामंडी) में स्थित है।

डूंगजी-जवाहर जी –

  • डूंगजी-जवाहर जी भी लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
  • यह दोनों भाई शेखावटी क्षेत्र में धनी लोगों को लूट कर उनका धन गरीब एवं जरूरतमंदों में बांट दिया करते थे।
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